Wednesday 30 September 2015

नयी पारी की शुरुआत

इस नयी दुनिया में पहला कदम है। सब को मेरा यथायोग्य अभिवादन।        
अभी पिछले माह संस्था ने याद दिलाया कि मैडम घर बैठने का समय आ गया है। तब लगा कि वर्षों से दबी-ढकी, दूर-दूूर तक घूमने, कुछ नया करने, सीखने जैसी इच्छाओं को अब पूरा किया जा सकता है। शर्मा जी के ब्लॉग के द्वारा कई बार महिलाओं की रचनाएं पढ कर बहुत दिनों से मेरी भी कुछ लिखने की एक छोटी सी तमन्ना थी। मन तो करता था पर समयाभाव और कुछ हिचक के कारण कभी कोशिश नहीं की। फिर ना तो मुझेे कविता का ज्ञान है, ना शेरो-शायरी का, कहानियां भी सिर्फ पढ़ पाती हूँ, तो लिखुंगी क्या ? 
यही बात-संकोच, शर्मा जी को बताया तो इन्होंने कहा, रोज कितने-कितने लोगों  से मिलना होता रहा है, सैकड़ों बच्चों को पढ़ाया है, स्कूल के पचासों संगी-साथी रहे हैं, रोजमर्रा की अनगिनत यादों को, खट्टे-मिट्ठे अनुभवों-संस्मरणों को ही लिपिबद्ध करो। यह भी एक नया अनुभव होगा। 
तो झिझकते हुए यह पहल की है। गलतियों की ढेरों गुंजाइशें हैं। पर आशा करती हूँ इन सब को नजरंदाज कर आप सब मेरा हौसला बढ़ाएंगे।